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Showing posts from January, 2025

ये मन बंजारा रे - गीता गैरोला

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"ये मन बंजारा रे" गीता गैरोला द्वारा लिखित एक दिल को छू लेने वाला उपन्यास है, जो पहाड़ी समाज के संघर्ष, जीवन और पहचान की भावनाओं को बहुत ही संवेदनशील तरीके से व्यक्त करता है। लेखिका लिखती हैं यात्राएं हमेशा मानसिक संपन्नता का सोपान होती हैं। यात्राओं में सैंकड़ों लोग मिलते हैं, उनकी कहानी सुनाई देती हैं, लोगों की जिंदगियों की सच्ची तस्वीर मालूम होती है। सुख-दुख की परतें बिखरती हैं, हम अपनी आंखों से देखें, कानों से सुनें दुख सुखों को अपनी झोली में भर कर आगे चल पड़ते हैं। पहाड़ों की उन संकरी उबड़-खाबड़ पगडंडियों पर जो कभी बहुत पास लगती हैं, कभी किसी मोड़ के बाद ओझल हो जाती हैं, कभी दूर चलती दिखाई देती हैं। यात्राओं ने मुझे हमेशा आगे बढ़ाया, रास्ता दिखाया और रास्ता बनाया भी। मुझे यात्राएं हमेशा किताबों की तरह लगती रही हैं।  यह किताब पहाड़ों के आत्मीय रिश्तों, पर्यावरण, और वहां के लोगों के जीवन की सच्चाइयों पर आधारित है। "यह मन बंजारा रे" का मुख्य विषय पहाड़ का जीवन और उसमें समाहित प्रेम, दर्द और संघर्ष है। यह एक तरह से आत्मीय खोज का सफर है, जिसमें पात्र अपन...

नए रास्तों पर

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"रास्ते हमेशा मेरी आत्मा को आवाज़ देते हैं, और पहाड़ों की बुलाहट मुझे कहीं न कहीं अपने भीतर के खोए हुए हिस्से से मिलवाती है। घुमक्कड़ी का हर कदम नए रहस्यों और अनदेखे दृश्यों की ओर ले जाता है, जहां हर मोड़ पर एक नया सवाल, एक नई खोज होती है। पहाड़ों की ऊँचाइयाँ न केवल शारीरिक यात्रा का अनुभव कराती हैं, बल्कि यह हमारे भीतर की अनजानी ऊँचाइयों तक पहुँचने का भी आह्वान करती हैं। इन अनमोल रास्तों पर चलते हुए, मन में एक अजीब सा ख्याल उभरता है- क्या हम जो देख रहे हैं, वही हम हैं, या फिर हर कदम हमें अपने असल रूप से और करीब ले आता है?" अंत में: "अब, जब इस यात्रा के अंत को देखता हूँ, तो महसूस होता है कि यात्रा कभी समाप्त नहीं होती। हम केवल नए रास्तों पर चलते हैं, लेकिन वही रास्ते हमें खुद के भीतर की गहराई से मिलवाते हैं। हर पहाड़, हर मोड़, और हर कदम ने मुझे अपनी असल पहचान से परिचित कराया। यह यात्रा भौतिक दुनिया की सीमाओं से परे थी; यह एक आंतरिक यात्रा थी, जिसमें मैं स्वयं को नए दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करता रहा। जब भी रास्ते खत्म होते हैं, एक नई शुरुआत इंतजार करती है -...