"देवभूमि डेवलपर्स" किताब की समीक्षा :
"देवभूमि डेवलपर्स" नवीन जोशी जी द्वारा रचित एक ऐसा उपन्यास है, जो उत्तराखंड के पहाड़ी समाज की बदलती परिस्थितियों, राजनीतिक संघर्षों और तथाकथित विकास त्रासदी को बेहद संवेदनशील और गहराई से उजागर करता है। यह किताब सिर्फ एक कहानी नहीं है बल्कि, पिछले कुछ दशकों में पहाड़ की पीड़ा, विस्थापन और जन आंदोलनों की महागाथा है। इसमें टिहरी बांध के निर्माण के कारण जलमग्न हुए गांवों, पहाड़ों की खाली होती बस्तियों और पलायन जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया है। यह किताब उत्तराखंड राज्य निर्माण की पृष्ठभूमि से लेकर आज तक के विडम्बना पूर्ण विकास की तस्वीर खींचती है।
उपन्यास के कथानक पहाड़ों के उस समाज को चित्रित करता है, जहां प्राकृतिक संसाधनों की लूट और राजनीतिक स्वार्थों ने लोगों के जीवन को गहरे स्तर पर प्रभावित किया है। उपन्यास के पात्र न सिर्फ अपनी व्यक्तिगत पीड़ाओं से जूझते हैं, बल्कि वह पूरे पहाड़ी समाज की सामूहिक वेदना को भी व्यक्त करते हैं।
उपन्यास उत्तराखंड के "नशा नहीं रोजगार दो" आंदोलन, टिहरी बांध के विस्थापन और खटीमा-मसूरी जैसे ऐतिहासिक घटनाक्रमों का सजीव वर्णन करता है। ये घटनाएं राज्य निर्माण के संघर्ष और नेताओं के असफल नेतृत्व को उजागर करती है। लेखक दिखाते हैं कि कैसे प्राकृतिक संसाधनों की लूट, पर्यटन के नाम पर रिजॉर्ट निर्माण और खनन गतिविधियां पहाड़ों के संतुलन को बिगाड़ रही हैं। भुतहा होते गांव और पलायन की समस्या को भी केंद्र में रखता है, जहां लोग अपने अस्तित्व और पहचान की लड़ाई लड़ते दिखते हैं।
नवीन जोशी की भाषा सरल लेकिन गहरी मारक क्षमता लिए हुए है। उपन्यास में स्थानीय पात्रों के माध्यम से समाज की सच्चाई को प्रकट किया गया है। उनकी भाषा में पहाड़ों की खुशबू और स्थानीय जीवन की जीवंतता है। पात्रों की पीड़ा, जैसे ही पुष्कर का संघर्ष या काकी की चीख, पाठक को झकझोर कर रख देती है। पात्रों के संवाद और घटनाओं का वर्णन पाठक को सीधे उस पीड़ा का सहभागी बना देता है।
किताब में पिछले चार दशकों की उत्तराखंड की घटनाओं और बदलावों को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।
यह उपन्यास न केवल उत्तराखंड के लोगों की समस्याओं को आवाज देता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि विकास की यह दौड़ आखिर किसकी कीमत पर हो रही है। यह सिर्फ उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, यह पूरे देश के उन हिस्सोंकी कहानी है, जहां विकास के नाम पर गहरा असर पड़ा। "देवभूमि डेवलपर्स" एक जरूरी दस्तावेज है, जो उत्तराखंड की सच्चाई और वहां के जनजीवन के बदलते स्वरूप को समझने के लिए पढ़ा जाना चाहिए। यह उपन्यास एक आईना है, जो समाज के सामने सवाल रखता है कि आखिर विकास का असली मतलब क्या है?
किताब के बीच में से - सपना देखेंगे कि आदर्श राज्य बने। गैरसैंण में राजधानी हो जिसके विधान भवन की छत पर पटाल बिछे हों, फर्श गोबर व मिट्टी से लिपा गया हो, विधायक जमीन पर बैठें और जनता की बेहतरी के लिए समर्पित रहें (चर्चा में ऐसे सुझाव रखे गए थे) लेकिन करेंगे ऐसा कि अपना छोटा सा राज्य लुटेरों, दलालों, ठेकेदारों और लम्पटों के हाथ पड़ जाए। हम विचार विमर्श करते रहेंगे और वही लोग यहां राज करेंगे जिन्होंने लखनऊ दिल्ली से उत्तराखंड को लूटा है।
यह उपन्यास न सिर्फ पहाड़ों की सच्चाई को उजागर करता है बल्कि यह भी बताता है कि समाज की उम्मीदें अभी भी जिंदा है। नवीन जोशी जी ने इस उपन्यास के माध्यम से एक आवाज दी है, जो समय के साथ गूंजती रहेगी। "देवभूमि डेवलपर्स" को पढ़ाना एक अनुभव है, जो पाठकों को अंदर तक झकझोर देता है।
हर्ष ददा का इस किताब के बारे में बताने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। उन्हीं की वजह से मैं इस किताब तक पहुंच पाया और नवीन जोशी जी के लेखन से परिचित हुआ। अब आगे नवीन जोशी जी का उपन्यास "दावानल" पढ़ूंगा और जल्द ही उसके अनुभव आपके बीच रखूंगा।
धन्यवाद।
विपिन चौहान "गारी"
पढ़ के अच्छा लगा , बहुत अच्छे से किताब को प्रस्तुत किया है Keep going
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