बसंत पंचमी और बसंत ऋतु का स्वागत:
जो ल्यौ पंचनाम देवता जो ल्यौ पंचमी का सालै जो ल्यौ हरि, ब्रह्मा, शिव जो ल्यौ मोरी का नारैण जो ल्यौ खोली का गणेश जो ल्यौ बारा मैनों की जसना जो ल्यौ भूमि का भूम्याल। बसंत पंचमी और बसंत ऋतु की शुभकामनाएं। आप सबको पता है कि हमारे देश में माघ, फागुण, चैत में बसंत ऋतु का आगमन होता है। इस समय डांड्यों में सुंदर-सुंदर फूल खिलते हैं। पेड़ों में नई-नई कोंपल आती है और चारों तरफ हरियाली ही हरियाली हो जाती है। हमारे उत्तराखंड की डांडे भी अयांर, पय्यां, मेलू, ग्वीराल, फ्यूली के फूलों से लकदक हो जाती है और खेत सरसों के फूलों से सज जाते हैं। (बसंत बौड़ीन झूमैलो)। ( ग्वीराल फूल फुलिगे म्यारा भीना । मालू बेड़ा फ्योलड़ी फूलिगे भीना। भीना । झपन्याली सकिनी फुलिगे घरसारी लयड़ी फुलिगे भीना । डाँड्यूँ फुलिगे बुरांस म्यारा भीना । डल फूलो बसन्त बौड़िगे भीना। बसन्त रंग माँ रंगै दै--भीना। ग्वीराल फुलिगे म्यारा भीना)। माघ माह में पूरे उत्तराखंड में बसंत पंचमी मनाने की परंपरा है। इस समय खेतों में जौ, गेहूं की हरियाली हर तरफ बिखर जाती है और और पीले सरसों खेत में ऐसे खेले रहते हैं जैसे कि...